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Thursday, August 2, 2018

टीबी में खानपान

टीबी से डरें नहीं, लड़ें : बचाव के लिए अपनायें ये आसान तरीके!
बदलते खानपान और लाइफस्टाइल की वजह से आजकल लोगों में ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) यानी टीबी (जोकि यक्ष्मा, तपेदिक या क्षय रोग के रूप में भी जाना जाता है) काफी कॉमन रोग हो गया है। पौष्टिकता की कमी, लंबे समय तक जंक फूड के इस्तेमाल, मीजल्स (खसरा) या निमोनिया (फेफड़े में सूजन) के बिगड़ने और एचआईवी पॉजिटिव होने से टीबी इन्फेक्शन के मामले पहले से कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह सोचना कि टीबी सिर्फ गरीबों की बीमारी है, गलत होगा। अब तो वर्ल्ड हेल्थ ऑॅर्गनाइजेशन ने भी टीबी को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित कर दिया है।
टीबी एक जीवाणुजन्य संक्रमण रोग है, जो माइक्रो-बैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। लोग इसकी चपेट में आते हैं, जिसमें से 87 मिलियन मामले किसी दूसरे मरीज से प्राप्त संक्रमण के कारण उपजी टीबी के होते हैं। हर वर्ष लगभग 4,00,000 भारतीय लापरवाही या अनियमित इलाज के कारण टीबी से मरते हैं।

क्या हैं लक्षण?

अकसर टीबी का जिक्र होते ही कमजोरी, तेज खांसी और बुखार जैसे लक्षण लोगों के दिमाग में आते हैं। मान लिया जाता है कि मरीज के फेफड़ों में ही इन्फेक्शन होगा। मगर टीबी सिर्फ फेफड़ों की बीमारी नहीं है, बल्कि टीबी का इन्फेक्शन शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। पेट, किडनी, रीढ़ की हड्डी, या ब्रेन में टीबी होना आजकल बहुत आम हो गया है।

फेफड़ों की टीबी के मुख्य लक्षण हैं:

  • तीन सप्ताह या उससे लंबे समय तक लगातार तेज खांसी व बुखार आना।
  • वजन में लगातार कमी या थकान महसूस होना।
  • खांसी के साथ बलगम का आना।
  • बुखार आना व ठंड लगना।
  • रात में पसीना आना।

किसे है सबसे ज्यादा खतरा?

वैसे तो किसी भी व्यक्ति को टीबी हो सकती है, लेकिन कुछ लोगों में इसका खतरा ज्यादा होता है। यदि आपका इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक शक्ति) कमजोर है, तो इस स्थिति में आपको टीबी होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे लोग जो उन लोगों के साथ रहते हैं, जो पहले से ही टीबी से संक्रमित हैं, को भी टीबी हो जाती है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट पर गौर करें, तो टीबी का एनुअल (सालाना) इन्फेक्शन रेट लगभग तीन प्रतिशत है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे होते हैं। क्योंकि बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है, इसलिए बच्चों को टीबी से इन्फेक्टेड लोगों से दूर रखना चाहिए।

कब जांच करवाएं?

टीबी का इलाज पहले की अपेक्षा अब काफी आसान हो गया है, लेकिन इसके बावजूद भी टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसका एकमात्र कारण है, लोगों की लापरवाही और जागरूकता की कमी। लंबे समय तक शरीर के किसी भी अंग में दर्द, कमजोरी, बुखार, खांसी जैसे लक्षण दिखें, तो टीबी की जांच जरूर कराएं। जो दवाइयां बताई जाएं, उसे निश्चित समय तक जरूर लेते रहें। उन्हें बीच में न छोड़ें। साथ ही साथ साफ-सफाई और खानपान पर विशेष ध्यान दें और प्रदूषण आदि से बचें।

कैसे करें टीबी से बचाव?

हर बच्चे को जन्म के कुछ दिनों बाद बीसीजी वैक्सीन लगवानी चाहिए। हालांकि श्वसन तंत्र के टीबी को यह 100 प्रतिशत कंट्रोल नहीं कर पाती है, लेकिन टीबी मेनिनजाइटिस (जिसे दिमागी बुखार भी कहते हैं) या दूसरे अंगों के टीबी इन्फेक्शन से ज़रूर बचाती है। अत: बच्चों को बीसीजी की वैक्सीन जरूर लगवाएं। टीबी के प्रति आपकी जागरूकता ही इस रोग को थामने का सबसे सरल उपाय है। आजकल तो सरकारी अस्पतालों में भी टीबी के मुफ्त इलाज की सुविधाएं दी जा रही हैं।

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